Blogspot - aakharkalash.blogspot.com - आखर कलश

Latest News:

खुद मुख्तार औरत व अन्य कविताएँ- देवयानी भारद्वाज 28 Jun 2013 | 02:37 pm

 रोज गढती हूं एक ख्वाब सहेजती हूं उसे श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच आपके दिए अपमान के नश्तर अपने सीने में झेलती हूं सह जाती हूं तिल-तिल हंसती हूं खिल-खिल... -      देवयानी भारद्वाज मैं अपना ....

अबकि बार तू सीता बनके मत आना- एकता नाहर 'मासूम' 21 Jun 2013 | 09:30 pm

अबकि बार तू सीता बनके मत आना स्त्री तेरे हज़ारों रूप, तू हर रूप में पावन,सुन्दर और मधुर। पर अबकि बार तू सीता या राधा बनके मत आना, द्रोपदी और दामिनी बनके भी मत आना, तू जौहर में जलती वीरांगना और, प्रेम...

वह इक आम सी लड़की- शाहिद अख्तर की कविताएँ 19 Jun 2013 | 10:16 pm

सवालों के खोटे सिक्‍के आंख का यह आसमान क्‍यों इस तरह पिघलता है कि ख्‍वाबों के खूंटों से सरक-सरक कर गिर जाती है नींद? सदियों के इंतजार के बाद भी क्‍यों तेरे मिलन की बेला जमाने से उलझती हुई सब्‍ज परबत...

नवनीत पाण्डे के कुछ शब्दचित्र 17 Jun 2013 | 12:41 pm

पता नहीं... माँ समझौतों में पूरी हुई पिता संघर्षों में दोनों ही का दिया कुछ-कुछ है मेरे पास पूरा किस में हूँगा पता नहीं... ***** अनिवार्यता जानते हुए तुम्हारा चरित्र मैं विवश हूं अपने चरित्र प्र...

वो बहारों का मौसम बदल ही गया- एक ग़ज़ल- शाहिद मिर्ज़ा शाहिद 7 Jun 2013 | 09:01 pm

नज़रें करती रहीं कुछ बयां देर तक हम भी पढ़ते रहे सुर्खियां देर तक आओ उल्फ़त की ऐसी कहानी लिखें ज़िक्र करता रहे ये जहां देर तक बज़्म ने लब तो खुलने की मोहलत न दी एक खमोशी रही दरमियां देर तक मैं तो करके स...

बस्ती का पेड़ - नन्द भरद्वाज 30 May 2013 | 07:58 pm

"पहले पहल सूखी थी, /कुछ पीली मुरझाई पत्तियां / फिर सूख गई पूरी की पूरी डाल / और तब से बदस्‍तूर जारी है / तने के भीतर से आती हुई /धमनियों का धीरे-धीरे सूखना" नन्द भारद्वाज की कविता- "बस्ती का पेड़" बा...

ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत- अशोक मिज़ाज 'बद्र' 25 May 2013 | 06:34 pm

दीर्घ विराम के पश्चात् आखर कलश एक बार फिर आपसे मुख़ातिब है जनाब अशोक मिज़ाज 'बद्र' साहब की दो बेहतरीन ग़ज़लों के साथ। उम्मीद है आपको इनकी शायरी का अंदाज़ पसंद आएगा।। (१) ज़रा सा नाम पा जाएँ उसे, मंज़िल स...

नीरज गोस्वामी की ग़ज़लें 8 Sep 2012 | 06:13 pm

(1) जब कुरेदोगे उसे तुम, फिर हरा हो जाएगा ज़ख्म अपनों का दिया,मुमकिन नहीं भर पायेगा वक्त को पहचान कर जो शख्स चलता है नहीं वक्त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये चा...

काश तुम्‍हारा दिल कोई अख़बार होता- शाहिद अख्तर की कविताएँ 31 Aug 2012 | 01:55 pm

मोहम्‍मद शाहिद अख्‍तर बीआईटी, सिंदरी, धनबाद से केमिकल इं‍जीनियरिंग में बी. ई. मोहम्‍मद शाहिद अख्‍तर छात्र जीवन से ही वामपंथी राजनीति से जुड़ गए। अपने छात्र जीवन के समपनोपरांत आप इंजीनियर को बतौर कैरि...

मिलन एक पल का- मालिनी गौतम की कविताएँ 28 Aug 2012 | 11:43 pm

Normal 0 false false false MicrosoftInternetExplorer4 मालिनी गौतम मालिनी गौतम प्रिंट मीडिया में एक सुपरिचित नाम है। देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित हिन्दी पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहत...

Related Keywords:

सादर, जीतेन्द्र या जितेन्द्र, sushil ghadi, कलश, डा० (श्रीमती) तारा सिंह, 3 चहार गुलशन 4, तीन चहार गुलशन चार, प्राण, मिट्टी पर कविताएँ

Recently parsed news:

Recent searches: