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Latest News:

Rashmirathi Part - 17 - By Ramdhari Singh Dinkar 27 Aug 2013 | 10:01 am

रश्मिरथी - Part - 17 'छल से पाना मान जगत् में किल्विष है, मल ही तो है, ऊँचा बना आपके आगे, सचमुच यह छल ही तो है। पाता था सम्मान आज तक दानी, व्रती, बली होकर, अब जाऊँगा कहाँ स्वयं गुरु के सामने छली ह...

Rashmirathi Part - 16 - By Ramdhari Singh Dinkar 26 Aug 2013 | 06:29 pm

रश्मिरथी - Part - 16 'सहनशीलता को अपनाकर ब्राह्मण कभी न जीता है, किसी लक्ष्य के लिए नहीं अपमान-हलाहल पीता है। सह सकता जो कठिन वेदना, पी सकता अपमान वही, बुद्धि चलाती जिसे, तेज का कर सकता बलिदान वही...

Rashmirathi Part - 15 - By Ramdhari Singh Dinkar 25 Aug 2013 | 10:11 am

रश्मिरथी - Part - 15 किन्तु, पाँव के हिलते ही गुरुवर की नींद उचट जाती, सहम गयी यह सोच कर्ण की भक्तिपूर्ण विह्वल छाती। सोचा, उसने, अतः, कीट यह पिये रक्त, पीने दूँगा, गुरु की कच्ची नींद तोड़ने का, प...

Rashmirathi Part - 14 - By Ramdhari Singh Dinkar 24 Aug 2013 | 08:48 pm

रश्मिरथी - Part - 14 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्र के बल से ही आदर पा...

Happy Rakshabandhan 19 Aug 2013 | 01:06 pm

Hi Friends Today I am here to wish you all my friends a very "Happy Rakshabandhan" Rakshabandhan - a festival about love and care for brothers to their sisters and sisters to their brothers....

Rashmirathi Part - 13 - By Ramdhari Singh Dinkar 13 Aug 2013 | 06:32 pm

रश्मिरथी - Part - 13 'वीर वही है जो कि शत्रु पर जब भी खड्‌ग उठाता है, मानवता के महागुणों की सत्ता भूल न जाता है। सीमित जो रख सके खड्‌ग को, पास उसी को आने दो, विप्रजाति के सिवा किसी को मत तलवार उठा...

Rashmirathi Part - 12 - By Ramdhari Singh Dinkar 11 Aug 2013 | 06:43 pm

रश्मिरथी - Part - 12 सिर था जो सारे समाज का, वही अनादर पाता है। जो भी खिलता फूल, भुजा के ऊपर चढ़ता जाता है। चारों ओर लोभ की ज्वाला, चारों ओर भोग की जय; पाप-भार से दबी-धँसी जा रही धरा पल-पल निश्चय।...

Rashmirathi Part - 11 - By Ramdhari Singh Dinkar 26 Jul 2013 | 03:46 pm

रश्मिरथी - Part - 11 खड्‌ग बड़ा उद्धत होता है, उद्धत होते हैं राजे, इसीलिए तो सदा बनाते रहते वे रण के बाजे। और करे ज्ञानी ब्राह्मण क्या? असि-विहीन मन डरता है, राजा देता मान, भूप का वह भी आदर करता ...

Rashmirathi Part - 10 - By Ramdhari Singh Dinkar 25 Jul 2013 | 09:11 pm

रश्मिरथी - Part - 10 कर्ण मुग्ध हो भक्ति-भाव में मग्न हुआ-सा जाता है, कभी जटा पर हाथ फेरता, पीठ कभी सहलाता है, चढें नहीं चीटियाँ बदन पर, पड़े नहीं तृण-पात कहीं, कर्ण सजग है, उचट जाय गुरुवर की कच्च...

Rashmirathi Part - 9 - By Ramdhari Singh Dinkar 30 Jun 2013 | 10:52 am

रश्मिरथी - Part - 8 श्रद्धा बढ़ती अजिन-दर्भ पर, परशु देख मन डरता है, युद्ध-शिविर या तपोभूमि यह, समझ नहीं कुछ पड़ता है। हवन-कुण्ड जिसका यह उसके ही क्या हैं ये धनुष-कुठार? जिस मुनि की यह स्रुवा, उसी...

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