Blogspot - sandhyakavyadhara.blogspot.com - मैं और मेरी कविताएं

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लहराओ तिरंगा... 15 Aug 2013 | 12:05 am

स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें..... देश का मुकुट हिमालय, सागर माथा अति पावन गंगा जमना की धरती ये, संस्कृति लोक लुभावन पुरवाई से महकती माटी,चंदन गंध सी मनभावन सागर चरण पखारे...

मैं स्कूल कैसे जाऊं ??? 12 Aug 2013 | 03:19 pm

कल ऐसी बरसात हुई, हर तरफ सिर्फ पानी ही पानी. नदी के किनारे है मेरा घर. घर की छत का कोना तक दिखाई नहीं दे रहा था. मैंने खुद अपनी आँखों से कई आदमी, जानवर सामान सब कुछ बहते देखा. माँ को घर छोड़ने के वक़्त ...

सखी री! गुनगुनाऊँ, गीत एक गाऊँ...संध्या शर्मा 31 Jul 2013 | 09:46 pm

सखी री! गुनगुनाऊँ, गीत एक गाऊँ अपनो के मेले मे, कभी अकेले में, एक पल मुस्कुराऊँ, गीत एक गाऊँ सखी री! गुनगुनाऊँ, गीत एक गाऊँ बरखा की रिमझिम में, फ़ुहारों की टिम टिम में, पंख फ़ैलाए उड़ जाऊँ झिंगुरों....

बरसे छंद घनघोर...संध्या शर्मा 26 Jul 2013 | 06:35 pm

मुझे क्या...? कब मेघ छाये कब बरखा बरसे चाहे यक्ष-प्रिया मेघदूत को तरसे मैं तो बरखा तब जानूं जब भावमेघ कालिदास के उमड़-घुमड़ छाएं शब्दों की अमृत बूंदें झूम-झूम बरसे भर जाये ताल-तलैया मनभावन रागों की गी.....

स्थायित्व पाना है...?... संध्या शर्मा 24 Jun 2013 | 03:53 pm

"बीत गई सो बात गई" भरोसा न करना इस कथनी पर सिर्फ धोखा है भूतकाल निश्चित वर्तमान अनिश्चित भविष्य में क्या होगा न तुम जानो न हम जीवन समन्दर किनारे बने वर्तमान रुपी रेत के टीले को भविष्य रुपी एक लहर ...

व्याकुल पीड़ा ... संध्या शर्मा 6 Jun 2013 | 10:48 pm

.... कांक्रीट के जंगल में अकेला खड़ा वटवृक्ष भयभीत है...? व्याकुल है आज चौंक उठता है हर आहट से जबकि जोड़ रखे हैं कितने रिश्ते - नाते सांझ के धुंधलके में दूर आसमान में टिमटिमाते तारे शांत हवा के झोंके मे...

यादें बचपन की... संध्या शर्मा 31 May 2013 | 10:25 pm

बीती यादें उमड़ -घुमड़ के आ रही रही हैं मेरे मन में कैसे-कैसे वो दिन हैं बीते क्या-क्या छूटा बचपन में रोज सबेरे सूरज आता स्वर्ण रश्मि साथ लिए नंगे पैरों दौड़ते थे हम तितलियों को हाथ लिए गेंद खेलना, रस्...

बनो अग्रदूत..... संध्या शर्मा 24 May 2013 | 05:00 pm

चाहते हो ??? बगुलों के बीच नीर-क्षीर विवेकी हंस होना ग्रहों से परिक्रमित होते प्रकाशित करते सौरमन्डल के सूर्य की तरह प्रतिपल चमकना तो भेड़ प्रवृत्ति से प्रथक जनसमूह का बनकर घटक अनुगंता, अनुकर्ता  नहीं ...

लघु कथाएं... संध्या शर्मा 19 May 2013 | 04:20 am

लघु कथा-1 दो निवाले सुख के उन्हें रिटायर हुए एक बरस भी न हुआ था कि पत्नी साथ छोड़ गई, जमा पूंजी का कुछ हिस्सा उसके इलाज़ में और बाकी बेटों ने मजबूरियां, तकलीफें बताकर हथिया ली. आसरे के लिए रह गए तो सि...

जय हिन्द.... संध्या शर्मा 4 May 2013 | 12:01 am

टूट चुका बाँध तबाही मची है सब कुछ बह गया कब तक सहोगे अन्याय - अत्याचार स्वाभिमान पर प्रहार प्रतीक्षा कैसी??? पानी के बुलबुलों के आगे तुम गंगा की जलधार क्यों न तोड़ दो??? अपने धैर्य का बाँध बह जाने द...

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