खुद को खोजने का एक सफ़र View RSS

हजरों लोगो से रोज़ मिलना जिंदगी का हिस्सा है कभी तन्हाई मे खुद से भी मिलना अच्छा लगता है .
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बहुत भीड़ है 31 May 2018 3:39 AM (7 years ago)

बहुत भीड़ है
पर अकेलापन है
दिखते साथ है
पर कोई साथ नहीं है
मेरे हिस्से का सुकून
चुरा के  पूछता है
तबियत आपकी
नासाज़ क्यों है
सोचती हु लौट चलू
अतीत की ओर
पर वहां किसी को
मेरा इंतज़ार नहीं है
बुलाती है पास जो राहे
 मंज़िल का पता उनके पास नहीं है

मंजुला


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फिर एक कोशिश कुछ लिखने की 21 May 2014 11:20 PM (11 years ago)










शिकायत बहुत थी की 
ठहरी सी है ज़िन्दगी
कुछ ऐसी  हलचल हुई कि
सबकुछ धुन्दला  सा गया 
अब वापस इंतज़ार है 
लहरो के शांत हो जाने का 
ताकि फिर समझ सकू 
कि आगे क्या है ज़िन्दगी के 
पिटारे मे मेरे लिए 
फिर कोई नई उम्मीदी ?
या फिर एक नया सवेरा 
या फिर फिर एक सफर 
बेनाम सा ,बेमतलब सा 
कभी कभी लगता है 
ठोस जमीन कि मेरी तलाश 
सिर्फ तलाश ही बन के  रह जाए
हमेशा कि तरह ..






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श्री राजीव दीक्षित , 9 Oct 2012 10:33 PM (13 years ago)

 मैंने राजीव भाई का व्याख्यान सुना बल्कि रोज़ सुन रही हूँ  ,बहुत सी जानकारी मिली  व जीवन को खुद से ऊपर उठकर देखने की चाहत तो थी पर कोई रास्ता कभी नही मिला जो मेरे जैसे आम इंसान के लिए सहज हो .. राजीव भाई को सुनकर लगा की हाँ एक किरण मिल गयी है आशा की ,सोचा बहुत अच्छी बात है आपलोगों से  बांटा  जाए .




 श्री राजीव दीक्षित  उनका जीवन व कार्य
स्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता, चिन्तक , जुझारू निर्भीक व सत्य को द्रढ़ता से रखने की लिए पहचाने जाने वाले भाई राजीव दीक्षित जी 30 नवम्बर 2010 को भिलाई (छत्तीसगढ़ ) में शहीद हो गए | वे भारत स्वाभिमान और आज के स्वदेशी आन्दोलन के पहले शहीद हैं | राजीव भाई भारत स्वाभिमान यात्रा के अंतर्गत छत्तीसगढ़ प्रवास पर थे | 1 दिसंबर को अंतिम दर्शन के लिए उनको पतंजलि योगपीठ में रखा गया था | राजीव भाई के अनुज प्रदीप दीक्षित और परमपूज्य स्वामीजी ने उन्हें मुखाग्नि दी | परमपूज्य स्वामी रामदेवजी महाराज व आचार्य बालकृष्णजी ने राजीव भाई के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है | संपूर्ण देश में 1 दिसंबर को ३ बजे श्रधांजलि सभा का आयोजन किया गया |
राजीव भाई के बारे में
राजीव भाई पिछले बीस वर्षों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के खिलाफ तथा स्वदेशी की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे | वे भारत को पुनर्गुलामी से बचाना चाहते थे | वे उत्तरप्रदेश के नाह गाँव में जन्मे थे | उनकी प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा फिरोजाबाद में हुयी उसके बाद 1984 में उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहबाद गए | वे सैटेलाईट टेलीकम्युनिकेशन में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे लेकिन अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़कर देश को विदेशी कंपनियों की लूट से मुक्त कराने और भारत को स्वदेशी बनाने के आन्दोलन में कूद पड़े | शुरू से वे भगतसिंह, उधमसिंह, और चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों से प्रभावित रहे | बाद में जब उन्होंने गांधीजी को पढ़ा तो उनसे भी प्रभावित हुए |
भारत को स्वदेशी बनाने में उनका योगदान
पिछले २० वर्षों में राजीव भाई ने भारतीय इतिहास से जो कुछ सीखा उसके बारे में लोगों को जाग्रत किया | अँगरेज़ भारत क्यों आये थे, उन्होंने हमें गुलाम क्यों बनाया, अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता, हमारी शिक्षा और उद्योगों को क्यों नष्ट किया, और किस तरह नष्ट किया| इस पर विस्तार से जानकारी दी ताकि हम पुनः गुलाम ना बह सकें | इन बीस वर्षों में राजीव भाई ने लगभग 15000 से अधिक व्याख्यान दिए जिनमें कुछ हमारे पास उपलब्ध हैं| आज भारत में लगभग 5000 से अधिक विदेशी कंपनियां व्यापार करके हमें लूट रही हैं| उनके खिलाफ स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत की | देश में सबसे पहली स्वदेशी-विदेशी सूची की सूची तैयार करके स्वदेशी अपनाने का आग्रह प्रस्तुत किया| 1991 में डंकल प्रस्तावों के खिलाफ घूम घूम कर जन जाग्रति की और रेलियाँ निकाली | कोका कोला और पेप्सी जैसे पेयों के खिलाफ अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की |
1991-92 में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कंपनी के शराब कारखानों को बंद करवाने में भूमिका निभाई |1995-96 में टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चा और संघर्ष किया जहाँ भयंकर लाठीचार्ज में काफी चोटें आई | टिहरी पुलिस ने तो राजीव भाई को मारने की योजना भी बना ली थी| उसके बाद 1987 में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रख्यात गाँधीवादी, इतिहासकार धर्मपाल जी के सानिध्य में अंग्रेजो के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके देश को जाग्रत करने का काम किया | पिछले 10 वर्षों से परमपूज्य स्वामी रामदेवजी के संपर्क में रहने के बाद 9 जनवरी 2009 को परमपूज्य स्वामीजी के नेतृत्व में भारत स्वाभिमान आन्दोलन का जिम्मा अपने कन्धों पर ले जाते हुए 30 नवम्बर 2010 को छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में भारत स्वाभिमान की रन भूमि में शहीद हुए |


सभी देश प्रेमियों और आन्दोलन में साथ देने के इक्छुक साथियो से अनुरोध है की कृपया इस फॉर्म में अपना विवरण भर दे,
सभी का एक होना ज़रूरी है इसके लिए यह फॉर्म भरे और और इस लिंक को आगे भी प्रेषित करें I सिर्फ लिखकर नहीं करके भी दिखाना होगा
राजीव भाई भाई का आशीर्वाद तभी मिलेगा एक कर्मयोगी बनकर:

https://docs.google.com/spreadsheet/embeddedform?formkey=dDhnOEpGc1VKWVh2NmpqNmpxRlBxekE6MQ

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Summer Flower Background Royalty Free Stock Vector Art Illustration
 (चित्र गूगल से साभार)

दिशा हीन सा ,
महसूस करना खुद को            
ये अहसास ,झकझोर जाता है भीतर तक
पर लगता है
अब परिस्तितियाँ मेरे बस मे नही
अतः छोड़ दिया है खुद को ,
स्वाभाविक बहाव के सहारे
बहने को
महसूस करना है सबकुछ ,
जो भी जिन्दगी ने
लिखा है हिस्से मे मेरे I

स्वप्न जो सच सा है 30 Apr 2012 10:16 PM (13 years ago)
















कशमकश बहुत है
मन के अन्दर
खोज खुद की
इतनी  आसन तो नहीं
इस कोशिश मे
लगता है
कुछ छुट सा रहा है
जिसको शायद मै
जाने नहीं दे सकती
प्रश्नचिंह सा लगा देता है मन
बहुत सी कोशिशो  को
बहुत मजबूती से जमे
संस्कार भी रास्ता रोक लेते हैं
फिर भी एक अजीब सा
आकर्षण है
जो मुझे खिचता है
पूरे वेग से
अपनी और
पता नहीं क्या है
भविष्य की मुट्ठी मे
मेरे लिए
फिर भी  चाहती हु
इस पथ पर चलते  जाना
जब तक अर्थ न पा लू
इस जीवन का
या फिर जान सकू
उस रहस्य को
जिसे
आत्मा साक्षात्कार
कहा जाता है .















(चित्र गूगल से साभार )

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ए हवा तू किस  शहर से आती है ?
क्यों तेरी हर लहर से उसकी महक आती है .

सबकुछ महफूज़ करने की मेरी तमाम  कोशिशे ,

उस एक झोंके से फिर से बिखर  जाती है .

मेरी खुशनुमा जिंदगी सिहर उठती है उस पल,

जब तेरे कण कण से उसकी बददुआ  की बू आती है

क्या फिर से उसने दी है मुझे बर्बाद होने की दुआ ?

क्यों तेरी हर लहर से मुझे खंजर की बू आती है .
                          
                          दर्पण विश्वास का
                                       चूर हुआ जब                                                                      आहात हुआ मन 
         बदल गया सारा ही जीवन 
                               
                         कोई ओर नहीं छोर नहीं   
                                 सुलझाऊ कैसे  
                                   बुरी तरह 
                          उलझे हुए धागे सा जीवन 
   
                             बहुत सन्नाटा है हर तरफ                   
                                    संवाद खुद से 
                                  भी हुआ मुस्किल 
                              ठहर सा गया है जीवन 

एक संकल्प इस होली मे .... 18 Mar 2011 12:52 AM (14 years ago)

फीकी पड़ चुकी है 
मन की चादर
सोचा इस होली मे 
कुछ नए रंग भरू
हरे नीले लाल के संग
कोमल गुलाबी रंग भी भरू
कोशिश की 
पर कुछ हो न पाया 
कोई भी रंग चढ़ न पाया 
कारण खोजा तो जाना
आस पास फैले भ्रस्ट्राचार ,अनाचार 
नित होते घोटालो ने 
सारे मन आकाश को ढक डाला 
सारा अंतर्मन काला कर डाला 
तभी कोई रंग 
उसपर चढ़ नही पाया 
अपने अपने दयारे मे कैद
कब तक घुटेगे इस तरह ?
आईये एकजूट होकर 
इन अव्यवस्ताओ से लडे
बड़ा काम न सही 
आस पास की गंदगी 
को ही साफ़ करे 
दाग लगा रहे जो समाज, देश को 
ऐसे शख्स को नज़रंदाज़ न करे 
व कभी न  माफ़ करे 
छोड़ कर निजी लड़ाई
देश हित मे काम करे 
ताकि फिर से 
काले पड़ चुके मन आकाश पर 
लाल,पीले हरे ,गुलाबी 
सारे के सारे रंग भर सके . 

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मेरा घर मेरे लोग ... 23 Dec 2010 9:55 PM (14 years ago)

आज कुछ लिखने का मन हुआ ,अभी कुछ दिनों से मै अपने दादाजी के घर गयी हुई थी जोकि पटना से कोई 20  किलोमीटर की दुरी पर है ,असल मे मेरे चाचाजी के बेटे की शादी थी ,मेरे पिताजी भेल भोपाल मे जॉब के चलते भोपाल मे ही बस गए थे ,हमारा वो पुस्तैनी घर से रिश्ता बस शादी या कोई दुर्घटना के समय पहुच जाना जितना ही रह गया था ...फिर मेरी शादी के बाद ये सिलसिला भी मेरे हाथ से चला गया था ,अब जब ये मौका मिला घर खानदान की आखरी शादी मे शामिल होने का तो मै खासी उत्साहित थी ट्रेन मे बैठे बैठे सारे पल बचपन के जो हमने वहां बिताये थे आँखों के सामने घुमने  लगे ,वहां कुछ दिन बिताने के बाद मेरा सारा उत्साह ठंडा पड चूका था ..फिर जो कविता निकली मन से वो आपसे शेयर कर रही हूँ .


    
   

बरसो बाद 
अपने घर लौटना हुआ         
अजीब सी ख़ुशी थी
पलके भीगी हुई थी                                                         
सबने गले लगाया 
कुछ उलाहना भी दिया 
फिर कुछ घंटो मे ही 
अनुमान हो गया 
जिस चीज़ की खोज 
मुझे यहाँ लायी थी 
वो लगाव  तो कहीं खो  गया 
उनके चेहरों  पर था एक डर 
अनजाना सा 
समझ पाई तब जाना 
उन्हें लगा था मै कहीं 
उस जायजाद की बात न करू 
जो मेरे पिता ने कभी मागी नहीं 
तब मुझे अहसास हुआ 
बचपन मै जो आंगन 
बहुत बड़ा हुआ करता था 
हम ढेर सारे भाई बहन 
को अपनी गोद मै लिए 
खिलखिलाता था 
आज अचानक मुझे 
छोटा छोटा क्यों लगा 
मन ही मन मै मुस्कुराई 
बहुत देर से ही सही  
मै ये गूढ़ रहस्य समझ  तो पाई 
घर बड़ा या छोटा नहीं होता 
उनमे रहने वाले 
उसे छोटा करते या विस्तार देते है 
प्यार ,यादे ,रिश्ते भी जायदाद है 
कभी कभी बड़े भी नही समझ पाते हैं 
मै अपना हिस्सा अपने साथ ले आई....
अपनी बचपन की सारी यादो को 
समेटकर  मै वापस चली आई 

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मेरे हिस्से का सूरज .. 29 Nov 2010 10:18 PM (14 years ago)



तुमसे मिलना ,
एक अजीब इतफाक था
अँधेरे मे गूम होते
मेरे अस्तित्व
को एक सूरज तुमने दिया था
जिसकी रौशनी मे
मैंने खुद को जाना
जीवन ख़तम नहीं हुआ
इस बात को भी पहचाना
अजीब मंज़र था वो भी
अपना हाल
किसी को भी न सुनाने वाली लड़की
एक अजनबी के सामने
तार तार होके बिखर गयी थी
तुमने बहुत ख़ामोशी
से सबकुछ सुना था
तुम्हरी मदद से
मैंने वापस जिंदगी का
ताना बाना बुना था
तुम्हारा  संतावना देता स्पर्श
आज भी महसूस करती हूँ
आज भी जब भी अँधेरा होता है
वो सूरज रोशन करता है जीवन
जो तुमने मुझे दिया था
तब मैंने जाना था
एक पुरुष और स्त्री
का सम्बन्ध
ऐसा  भी हो सकता है
अगर इसे नाम देना
जरुरी हो तो
कह सकती हूँ
तुम हो
मेरे हिस्से का सूरज .

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तेरे साथ का वादा 23 Nov 2010 8:19 PM (14 years ago)












तुम बिन जीवन मे
 एक अजीब सी कमी है .
जैसे खुशबू ही न हो जीवन मे  ,
भले ही वो फूल सी खिली है .
तुम जो साथ होते हो ,
अजब चमत्कार होता है .
मंजिल तक जाकर लगता है ऐसा,
जैसे मै नहीं मंजिल मेरे पास तक चली है .
रास्ता पता है तो भी क्या ,
तुम साथ आओगे  इसलिए रुकी हूँ  .
तुम साथ होकर भी साथ हो या न हो ?
बस ये प्रश्न पर मै उम्र भर ढगी हूँ .
उगते हुए सूरज का नर्म उजाला ,
आकर्षित करता है तो क्या .
सिर्फ तेरे साथ का वादा हो तो ,
मै अंधेरो मै ही भली हूँ.

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ये जिन्दगी एक इम्तिहान 28 Oct 2010 9:48 PM (15 years ago)



















नर्म मुलायम सी
खुबसूरत सी दिखती है जिन्दगी,
भीतर गर्म लावे सी पिघलती है
पल पल ये जिंदगी ,
मौहौल है मैला मैला सा
हर इंसान है भटका भटका सा,
किस से  क्या उम्मीद करूँ 
हर तरफ है मायूसी ,
हर चेहरे पर है बेचारगी 
हालात ऐसे ही बनाती है जिंदगी,
एतबार जो बहुत था खुद पर
 कतरा कतरा बिखर गया,
जाना  था किस राह मुझे
कहाँ ले आई मुझे ये जि,न्दगी
गिर के फिर से उठ कर
चलने की जिद करती हूँ,
खीचने को  वापस गर्त मे
मचलती है जिंदगी.
मुझे भी जिद है बर्बाद होने की
रोकने  से रुकुगी नहीं,
ले ले कितने भी
इम्तिहान ये जिन्दगी.

(चित्र गूगल से साभार )

.

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प्रकृति की पुकार सुनो....... 7 Oct 2010 10:32 PM (15 years ago)















आज  मे  खिड़की पर  खड़ी थी 
तेज़ी से भागते यातायात व 
आते जाते लोगो को देख रही थी
तभी मेरी नज़र 
अपने बगीचे के पेड़ पौधों पर पड़ी 
लगा जैसे वो शिकायत कर रहे हैं
और  नाराज़गी से घुर  रहे है  
जैसे कह रहे हो 
अब तुम्हरे पास हमारे  लिए वक्त ही नहीं है
पहले रोज़ प्यार से सींचा दुलारा करती थी
घंटो निहारा  करती थी 
जेहन पर एक झटका सा लगा
वाकई मे  जीवन की भाग दौड़ 
प्रकृति से दूर  करती जा  रही है
और हमें अहसास तक नहीं है 
तभी प्रकृति को  रौद्र  रूप मे 
आना  पड़ता है
कभी सुनामी बनकर 
तो कभी हमारी बुनियाद  को हिला कर
अपने  होने का अहसास करना पड़ता है


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तन्हा सफ़र ....... 6 Oct 2010 11:25 PM (15 years ago)















साथ चलते तो बहुत है 
साथ होते बहुत कम है 
बहुत कम पढ़ पाते हैं 
आपकी हंसी के पीछे जो गम है 


उम्र भर साथ चलके 
वफ़ा का सबूत मांगते है हमसे
संबंधो का ये बिखरा रूप देखकर 
खुद से बहुत सर्मिन्दा आज हम है 


कुछ रिश्ते है अब भी है जीवन मे
जो मन को  अच्छे लगते हैं '
पर जीवन की  इस भागदौड़ मे 
उन  तक मेरी पहुच बहुत कम है .... 

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उम्मीद 4 Oct 2010 11:04 PM (15 years ago)

देखती हूँ खुद को
रोज़ अपने अस्तित्व
की लड़ाई लडते हुए ,
चाहे अनचाहे रिश्ते
लगातार ढ़ोते हुए ,
खुद के सुनाय फैसलों पर
खुद को रोते हुए ,
अपनी नाकामी छुपा कर
खुद को मुस्कुराते हुए
जतन से सजाये हुए सपनो को
टूट कर बिखरते हुए
एकाएक कुछ देख कर चौक जाती हूँ
फिर से उसे महसूस करने से घबराती हूँ
जादातर वादे जो जिन्दगी मे टूटे ,
वो सब मैंने ही खुद से किये थे ,
जादातर नाकामी की वजह ,
सिर्फ मेरी कमजोर कोशिश थी ,
हकीकत को समझ कर
फिर से संभालते हुए ,
नए सिरे से सहेजने की कोशिश
खुद को करते हुए ,
भीगी हुई आँखों को
इत्मीनान से मुस्कुराते हुए





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मन की उलझन 27 Sep 2010 11:52 PM (15 years ago)

कभी कभी जिंदगी बहुत अजीब लगती है ,
जैसे बेमतलब सी बस सांसे भरती है ,
जीना है इसलिए बस जिए जा रहे है
जबरदस्ती कोई बोझ सा ढोए जा रहे है

जिस रह पर चले है उसकी कोई मंजिल नहीं है
लौट पाना भी जहाँ से मुमकिन नहीं है ,
बहुत लोग साथ है पर जैसे कोई साथ नहीं है ,
हर हंसी के पीछे दर्द बहुत गहरा है .

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उसकी याद मे .... 24 Sep 2010 1:43 AM (15 years ago)

उससे कोई ख़ास वास्ता न था ,
साथ ही का बस रिश्ता भर था ,
कभी कभी मिलना मुस्कुराना
बस संवाद इतना ही था

आज उसका आचानक चला जाना
इतना उदास करेगा सोचा न था
सबको समझने का दावा करनेवाला मन
खुद ही खुद से कितना अनजाना है,

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एक और इशारा खुद को पाने का .. 17 Sep 2010 10:12 PM (15 years ago)

उन्होंने कहा सबसे प्यार करो
जिन्दगी खुद ही प्यारी हो जाएगी
मैंने कोशिश की पर हो नहीं पाया
हर किसी के लिए प्यार पनप नहीं पाया

मैंने उन्हें कहा मेरी समस्या का हल करो
मेरे अन्दर भी कुछ रूहानियत भरो
उन्होंने कहा पहले जो भरा है उसे बाहर करो
क्रोध ,नफरत , इर्षा ,इन सबको अलविदा कहो.

जब पात्र ख़ाली होगा तभी तो कुछ भरेगा
तुम तो पहले ही इतना सब भरे बैठे हो,
सारी धुंद को खुद मे से साफ करे,सबको माफ़ करो
तभी सबको और खुद को सचमे प्यार कर पाओगे

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जीवन तेरे रूप अनेक 19 Aug 2010 10:49 PM (15 years ago)

कभी उदासी की छाव
कभी खुशी की धुप
बहुत हैरान करते हैं
पल पल बदलते जीवन के रूप


टूट कर जुड़ना
जुड़ के फिर से टूटना
जब तक सांस चलती है
ये क्रम चलता है

कभी आपका होना
निरर्थक सा लगता है
कभी आपके अपने
उसे अर्थपूर्ण बना देते हैं

हजरों लोगो से रोज़ मिलना
जिंदगी का हिस्सा है
कभी तन्हाई माय खुद से भी मिलना
अच्छा लगता है .

शूभ दिन
मंजुला

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व्यथा 8 Aug 2010 11:43 PM (15 years ago)

जीना बहुत आसन है ,
हँसना भी मुस्किल नहीं
पर परते उतारना हमारी आदत है,
अच्छाई को छिल कर बुराई निकलना ,
हमें सुख देता है सुकून देता है ,
अच्छाई को गुना करने की किसी को फुर्शत नहीं ,
बुराई को पल मे कई गुना करना हमारी ताकत है ,
सच खुसबू मे लिपटा हुआ आता है ,
हमारी हरकतों से बदबूदार होके लौट जाता है
खुद ही सबकुछ मुस्किल करते है
फिर कहते है जीना मुस्किल है
मुस्कुराना आसन नहीं
यही आज का जीवन है
यही सच है इस दौर का

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जिंदगी से जिंदगी चुराना सिख लिया,
अस्को से आसिकी निभाना सिख लिया ,

जिंदगी क्या मौखोल उड़ा पायेगी मेरा ,
उसकी हर चाल पर मुश्कुराना मैंने सिख लिया ,

खवाबो के पीछे भागना मैंने छोड़ दिया,
उन्हें कैसे खुद अपने पीछे लाना है ये सिख लिया ,

ख़ुशी या रंज कोई डिगा न सकेगे कदम मेरे ,
हर हाल मे चलते जाना मैंने सिख लिया ,

खुद मे संवेदनायों का मरते जाना बहुत सालता था मुझे ,
अब मैंने खुद को खुद के अन्दर जिन्दा रखना सिख लिया .

द्वारा मंजुला
शुभ दिनकब तक खुद को खुद से अनजाना सा रखे
झूट मुट खुश रहने का क्यों भरम सा रखे
मन के भीटर सबकुछ बिखरा बिखरा है ,
ऊपर से कब तक खुद को सहज सुलझा रखे.
जीवन के उल्घे धागों को सुलझा ही लेगे कभी ,
कब तक इस भरम को खुद मे जिन्दा रखे .
हर तरफ राह मे पत्थर और कांटे है ,
पल पल घायल होते तन मन को कैसे महफूज़ रखेमुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देते ,
नाम का बचा है जो रिश्ता उसे भी तोड़ क्यों नहीं देते ,

जब भी मिलते हो हम बहुत ख़ास है ये ही बताते हो ,
कब तक पहनोगे ये नकाब ?इसे उतार क्यों नहीं देते ,

बहुत अजीब रूहानी सा एक रिश्ता जोड़ा था तुमसे ,
वो मेरा पागलपण था ये एक बार मुझे कह क्यों नहीं देते ,

न चाहते हुए भी बहुत इंतज़ार होता है तुम्हारा,
अब कभी लौट के न आओगे ये एक बार कह क्यों नहीं देते .मैंने जब भी खुद को उदास पाया,
सदा उसका साया अपने साथ पाया,
मेरे हर दर्द पर उसकी आँखों मै नमी थी ,
मे महसूस नही कर पाई ,ये मेरी ही कमी थी .
उसकी गहराई मेरे समघ के बहार की चीज़ थी ,
फिर भी उसे मेरी समघ पर सदा ऐतबार था ,
मे कहती रही मुझे ही उससे सबसे जादा प्यार है ,
उसने कहा कुछ नहीं बस प्यार महसूस कराया है
सब छोड़ कर आगे निकल गए जिनपर मुझे ऐतबार था,
पर आज भी मुझपर उसका साया है .पता नहीं इंसान की कैसी फितरत है
वही अजीज़ है जो हासिल मुस्किल hai,

उस पाक रह पर वो ले चला है मुझे ,
पर बार बार भटक जाना मेरी किस्मत है ,

उपरी ख़ुशी से दूर एक रूहानी सुकून भी है ,
समघ कर भी उसकी बात बहुत अनजान हूँ उस से ,

वो जानता है अंत मै उनकी पनाह ही मुझे आना है ,
मेरे इंतज़ार मै सदियों से पलके बिछाये बैठा है