Wordpress - hsonline.wordpress.com - तिरछी नजरिया

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संभवामि युगे युगे? 17 Aug 2013 | 01:46 pm

भारत का जनजीवन हजारों वर्षों से अवतारों की कहानियों के साथ विकसित होता आया है। अलग-अलग युगों में बहुत से अवतारों ने “तारणहार” की भूमिका निभायी है। एक ऐसे समाज में जहाँ बच्चा पैदा होते ही अवतारों की कह...

निबन्ध – भारत एक उत्सवप्रिय देश है 7 Aug 2013 | 09:26 am

प्रश्न-”भारत एक उत्सवप्रिय देश है” इस विषय पर किसी भी एक उत्सव का उदाहरण देते हुए निबन्ध लिखो। उत्तर: निबन्ध – भारत एक उत्सवप्रिय देश है। 1. हम जिस देश में रहते हैं उसे भारत कहते हैं। 2. भारत में वर्ष...

दुर्गा-शक्ति-नागपाल (लघुकथा) 2 Aug 2013 | 10:32 am

सुबह आठ बजे का समय। मुख्यमंत्री निवास के बाग में खद्दर का कुर्ता-पायजामा पहने मुख्यमंत्री दुर्गाप्रसाद चाय पी रहे थे। सामने टेबल पर कुछ बिस्किट और भुने हुए नमकीन काजू रखे हुए थे। इतने में सिलेटी रंग क...

पुस्तक समीक्षा – दीवार में एक खिड़की रहती थी (विनोद कुमार शुक्ल) 27 Jul 2013 | 12:10 am

संपन्नता और विपन्नता के समाज में कुछ सर्वमान्य पैमाने होते हैं। संपन्न्ता या विपन्नता के अपने-अपने स्तरों पर हम किसी की अपेक्षा संपन्न और किसी की अपेक्षा विपन्न होते हैं। यह तुलना हर स्तर पर होती है क...

चुनावी पैरोडी: हम समर्थन करने वाले! 20 Jul 2013 | 10:30 am

॥नमो-नमो॥ शुभ समाचार! शुभ समाचार!! शुभ समाचार!!! नमो भक्तों के लिये शुभ समाचार!! आपको भक्ति-रस से ओत-प्रोत कर देने वाला बहुप्रतीक्षित भजन अंततः आ गया है तो फिर शुभस्य शीघ्रम!! ले आओ अपना पेटी-तबला और ...

मैं हूँ क्या? [कविता] 13 Jul 2013 | 09:25 am

क्या? मैं हिंदू हूँ मैं मुस्लिम हूँ मैं राष्ट्र हूँ मैं राष्ट्रवादी हूँ मैं हिंदू राष्ट्रवादी हूँ मैं राष्ट्रवादी हिंदू हूँ मैं राष्ट्रवादी मुस्लिम हूँ मैं मुस्लिम राष्ट्रवादी हूँ मैं हिंदूवादी राष्ट्...

निर्धनता को शापित एक समाज की समृद्धि का अभिलेख – बूढ़ी डायरी 27 Jun 2013 | 11:57 pm

भारत क्या है? इस प्रश्न पर विवादों का कोई अंत नहीं है। एक वर्ग है जो भारत को यूरोप की तरह अनेक संस्कृतियों का एक बेमेल समुच्च्य मानता है। उनके मत से यदि अंग्रेजों ने इस देश पर राज न किया होता तो यह दे...

आरंभ और अंत [कविता] 4 Jun 2013 | 09:27 pm

ऊंचे पर्वतों पर किसी गंगोत्री से जो निकले उस जलधारा का गंगा हो जाना और मिल जाना समुद्र से अंततः क्या है? नियति है? या सचेत एक निर्णय है उस जलधारा का? या यह कि पर्याय नहीं कोई गंगा हो जाने के अतिरिक्त!...

ओह! यस, अभी! – (व्यंग्य) 12 May 2013 | 12:08 pm

गर्मियों के दिन हैं, कभी ये छुट्टी के दिन हुआ करते थे। श्रीमतीजी चूँकि कॉलेज में पढ़ाती हैं अतः उन्हें गर्मियों में छुट्टियाँ मिल जाती हैं। पिछले सप्ताह वे मायके चली गयीं। उन्हें ट्रेन में बिठा कर घर ...

ज्ञानार्जन – स्वामी विवेकानंद 6 Apr 2013 | 07:30 pm

ज्ञानार्जन -स्वामी विवेकानंद ज्ञान के आदि स्रोत के संबंध में विविध सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं। उपनिषदों में हम पढ़ते हैं कि देवताओं के संबंध में प्रथम और प्रधान ब्रह्मा जी ने शिष्यों में उस ज्ञा...

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