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वस्तुतः रक्षाबंधन है क्या?---विजय राजबली माथुर 24 Aug 2013 | 05:16 pm

 Danda Lakhnavi जी की फेसबुक वाल पर एक कमेन्ट पर उनकी प्रतिक्रिया देख कर मैंने एक पोस्ट दी थी जिसे नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है परंतु उससे पूर्व एक और पुरानी पोस्ट उद्धृत है जिसमें ब्रह्मसूत्रेण अर्था...

घोटालू का नया कारनामा भी विफल हुआ 18 Aug 2013 | 05:03 pm

घोटालू है क्या? घोटालू यूनियन बैंक का एक कारिंदा है। यूनियन बैंक के अधिकारियों ने कमलानगर आर्यसमाज,आगरा में बताया था कि,'इस अर्थ पर अर्थ के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है'। लिहाजा घोटालू का कार्य अर्थ ...

13 जूलाई कांड -दान देना घातक हुआ 12 Aug 2013 | 06:03 pm

हालांकि 12 जूलाई 2013 को पाक्षिक पत्रिका के संपादक महोदय और उनके साथी के बांदा के लिए प्रस्थान करते ही लखनऊ क्षेत्र के भीतर ही उनकी जीप के साथ गंभीर हादसा हुआ था जिसमे आगे का 'विंड मिरर' पूरी तरह नष्ट...

चतुर्थ वर्ष में ब्लाग और अनुभव ---विजय राजबली माथुर 3 Aug 2013 | 07:00 am

मंगलवार, 3 अगस्त 2010 से इस ब्लाग का प्रारम्भ इस लेख से हुआ था : "लखनऊ तब और अब " http://vidrohiswar.blogspot.in/2010/08/blog-post.html वैसे एक ब्लाग 'क्रांतिस्वर' पहले से चल रहा था जिसमें पूर्व प्र...

जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिद्धान्त ही चल रहा है ---विजय राजबली माथुर 25 Jul 2013 | 05:51 pm

सुप्रसिद्ध आलोचक/साहित्यकार वीरेंद्र यादव जी को किसी के द्वारा एस एम एस से धमकी दिये जाने पर धमकीदाता के विरुद्ध FIR कराने का सुझाव जिन राजनेता द्वारा दिया गया है और इसे 'जुर्म' की संज्ञा दी गई है उनक...

एच के मेरठिया और पी टी सीतापुरिया में क्या अंतर है? 14 Jul 2013 | 09:53 am

1972 में सारू स्मेल्टिंग,मेरठ में मुझे एकाउंट्स विभाग में जाब तो मिल गया था लेकिन न मेरे पास अनुभव था न ही मैं कामर्स पढ़ा था।  क्योंकि तब एकाउंट्स में हंस कुमार जैन साहब  क्लर्क और रिटायर्ड बैंक मैनेज...

गारबेज के खिलाड़ी-फंसा दिया कबाड़ी ---विजय राजबली माथुर 11 Jul 2013 | 08:38 am

अक्सर लोग सरकारी विभागों व कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की शिकायतें करते हुये मिलते हैं। लोगों की अवधारणा है कि निजी क्षेत्र जनता को अधिक राहत देता है। मैंने प्राईवेट लिमिटेड,पब्लिक लिमिटेड,प्रोपराईटरशिप...

निस्वार्थ,निशुल्क सेवा देना - है मुसीबतों को दावत देना!---विजय राजबली माथुर 3 Jul 2013 | 05:32 pm

एक समय की बात है कि मुसीबत के मारे की मदद करना एक परोपकार माना जाता था और मदद लेने वाला इसका एहसान मानता था। एहसान न भी माने तो कम से कम मदद करने वाले का नुकसान करने की तो बात भी नहीं सोच सकता था। लेक...

तो फिर वे क्यों ऐसा करते हैं?(भाग-3) ---विजय राजबली माथुर 25 Jun 2013 | 06:30 am

 माँ की 19वीं पुण्य तिथि पर विशेष गत अंकों में खुद को 'खुदा'समझने वाले अहंकारी लोगों की इस ज़िद्द का वर्णन किया है कि वे बिना किसी लाभ की प्राप्ति के सिर्फ मुझको परेशान रखने में ही आनंदित होते रहते ह....

तो फिर वे क्यों ऐसा करते हैं?(भाग-2) ---विजय राजबली माथुर 17 Jun 2013 | 08:51 am

आज ही के दिन उन्नीस वर्ष पूर्व जब मैं शालिनी के देहावसान की सूचना देने अर्जुन नगर रानी मौसी के घर गया था तब यशवन्त साथ नहीं गया था क्योंकि उस वक्त बाबूजी व माँ घर पर थे। रानी मौसी ने नवीन को भी बताने ...

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